Friday 9 January 2015

महिला सशक्तिकरण वरन् महिला शोषण

आज की लड़कीया घरो से बाहर निकल रही है. घर व् बाहर दोनों ही जगहों की ज़िम्मेदारी बेटो की तरह ही निभा रही है पैसे कमा रही है ताकि आत्मनिर्भर बन सके ,अपने निणय स्वयं ले सकती है . अब इस  स्थिति को महिला सशक्तिकरण का नाम दिया गया है.
पर क्या ये सच है ? मुझे नहीं लगता . मुझे तो ये अब महिला सशक्तिकरणके नाम पर औरतों के शोषण का नया हथियार दिख रहा है आप सोच रहे होगे कैसे, आज की औरत तो पूरी तरह से मुक्त है अपने निणय स्वयं  लेती है जब चाहे तब कही भी जा सकती है, पर क्या ये पूरी तरह से सच है, शायद १/३ %, क्योकि ये १/३ % समाज का वो हिस्सा है जो हायर क्लास या उच्चतम् वर्गीय होता है पर , वहां पर तो औरतो की स्थिति पहले से अच्छी ही थी ,हो सकता है कुछ बदलाव आया हो पर इस वर्ग की औरते पहले भी आत्मनिर्भर थी .
तो फिर महिला सशक्तिकरण किसके काम आया या फिर ये कहे की किसके लिए हुआ, जिसके लिए भी हुआ हो पर महिलाओं के लिए तो न के बराबर हुआ है बल्कि अब ये शोषण का नया जरिया बन गया है मै आपको उदाहरण देते हुए बताती हुँ की कैसे महिला सशक्तिकरणका, महिलाओं के लिए शोषण बन गया है
आप किसी भी सन्डे का न्यूज़ पेपर को ले और उसकी मैग्जिन देखे आप को एक मेट्रीमोनियल मैग्जिन भी मिलेगी और उसे ध्यान से देखिये सबसे ज्यादा लड़कीया डिमांड में वो है जो ग्रहकार्य में दक्ष तो हो ही साथ ही प्रोफेशनली क्वालिफाइड भी हो (याने की दहेज के साथ मंथली इन्ट्रेस्ट भी घर ले कर आये ). कहने को तो ये लड़की कि अपनी कमाई है वो जो चाहे वो कर सकती है पर सच तो ये है कि लड़कीयो के अकाउंट की जानकारी पहले पिता या भाई और  बाद में पूरी तरह से पतिदेव रखते है ये प्रोफेशनली क्वालिफाइड औरते घर  के बहर आत्मविश्वास से भरी दिखती है पर घर में इनकी स्थिति बद्दतर होती है. वो चार बजे उठती है घर  का सारा काम खत्म करती है पतिदेव के कपड़ो से लेकर बच्चो के टिफिन व् लंच तक की तैयारी करती है उसके बाद ऑफिस जाती है जहाँ पर बॉस की नाराजगी तथा सहकर्मीयो के सस्ते जोक्स सुनती है फिर जब शाम को ये कामकाजी महिलायें घर आती है तो गर्मा गर्म  शिकायतों के साथ सासु माँ उनका स्वागत करती है और कामकाजी महिला फिर से शाम की चाय से लेकर रात के खाने की व् दुसरे दिन की भी तैयारी में जुट जाती है हॉ ये बात जरुर है की महीने के एक आध दिन इनके अच्छे निकल सकते है और वो खास दिन उनकी सैलरी आने के समय के आस पास होते है वैसे सोसाइटी में व् परिवार में इन औरतो की स्थिति घरेलू महिलायों से बेहतर मानी जाती है क्योंकि सबके सामने इनके पति इनको ससम्मान अर्धांग्नी (आधे से ज्यादा परिवार का खर्चा उठाने वाली ) का दर्जा देते है और वही घरेलू महिलायों को आलसी कहते है फिर चाहे उस घरेलू महिला को जीवन में सन्डे, सिक लिव व् रिटायर्मेंट भी न हो पर ये तो कामकाजी महिला के हिस्से में भी बिरले ही मिलते है , पर एक फायदा इन कामकाजी महिला को जरुर मिल जाता है की कभी – कभी कुछ घरो में इनको फुल टाइम मैड रखने की इज्जात जरुर मिल जाती है पर घरेलू महिलायों के हिस्से में हाफ़ टाइम मैड भी आ जाये तो बड़ी बात है उसमे भी अगर मैड रुक जाये तो भाग्य और महीने के पुरे 15 दिन भी आये ,पूरा काम करे तो उस घरेलू महिला और कामकाजी महिला से बड़ा भाग्यशाली तो इस संसार में कोई नही है. अन्यथा सारा काम ले दे कर वापस घरेलू महिला और कामकाजी महिला के हिस्से में ही है
अब आते है घरेलू महिलायों की स्थिति पर,जो की खास अच्छी नही है क्योकि गाहे बगाहे मंथली इन्ट्रेस्ट न देने  के कारण उसे ताने व् उसके उपर कितना खर्चा होता है इसका ब्यौरा उसके पति से मिल जाता है जैसे की वो औरत आपके परिवार पर एक बोझ हो .फिर भले ही ये घरेलू महिला पुरे 24 घंटे च्क्करघिनी की तरह पुरे घर की जिम्मेदारी सम्भाले, लाईन  में लगकर भरी दोपहर में पसीना पोछते हुए सारे बिल्स भरे, बच्चो की पढाई से लेकर एक नर्स की तरह घर के बुर्जगो की सेवा करे, एक सन्डे तक के लिए अर्जी न दे तब भी पति से कुछ जरूरत पड़ने पर माँग लेती है तो ये जरुर सुनने को मिल जायेगा कि “तुम्हारी तो रोज नई डिमांड होती है जरा औरो कि बीवियों को देखो कैसे स्मार्ट बनकर रहती है अपने पतियों के साथ घर का खर्चा उठाती है, घर को भी सम्भालती है और एक तुम हो पता नही पूरा दिन घर में पड़े क्या करती हो बस रोज एक नई फरमाईश, अपने बच्चो तक तो तुम सम्भाल नही पाती हो और न ही घर में किसी का ख्याल रखती हो”
अब ये बताईये जनाब घर का ख्याल रखना एक अकेली औरत का ही काम है,बच्चा जितना माँ का है उतना पिता का भी तो है तो फिर उसकी गलती के लिए हमेशां माँ ही की क्यों जिम्मेदारी होती है पिता भी तो उतना ही जिम्मेदार होता है और रहा जहा तक परिवार की खुशियो का ध्यान, तो इसमें भी 50% जिम्मेदारी पति की भी बनती है. जब एक परिवार पति व् पत्नि दोनों की सहभागिता से बनता है तो उसे जुडी हर जिम्मेदारी, ख़ुशी, समम्स्या में भी 50-50% की सहभागिता होती है
वैसे अभी तक मुझे अपने पुरे अनुभव में महिला सशक्तिकरण किसके लिए हुआ ,ये समझ में नही आ रहा है ,बल्कि इसके कारण तो औरते और शोषित हो रही है. अब औरतो के ऊपर दोहरी मार पड़ रही है वो घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी उठा रही है, बॉस की कुटिल मुस्कान, सहकर्मियों के सस्ते संवाद ऑटो,बस व् रास्तो में होने वाली छेड़- छाड, एसिड अटेक,रेप तथा ससुराल वालो की अनगिनत डिमांड सब कुछ तो झेल रही है
ऐसा नही कि मै महिला सशक्तिकरण के खिलाफ हुँ बल्कि इसकी समर्थक हुँ पर इसका एक स्याह पहलू भी है जिसकी तरफ ध्यान देना जरूरी है .वरना ये उच्चतम् वर्ग के लिये महिला सशक्तिकरण और मध्यम वर्ग के लिए महिला सशक्तिकरण न होकर महिला शोषण है.  
तो बताइए महिला सशक्तिकरण आखिर किसके लिए हुआ है ? और अगर आप को मेरी बात का उत्तर देने की या फिर मेरी बातो से आपके दिल या दिमाग को बुरा लगा हो उसके एवज में आप मुझे उत्तर देना चहते है तो एक बार आप अपनी  घरेलू  माँ,कामकाजी भाभी ,व् शादीशुदा कामकाजी बहन से जरुर पूछ लीजियेगा की आखिरकार ये महिला सशक्तिकरण किसके लिए हुआ है और इससे किसको ज्यादा फायदा पहुँच रहा है

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