Monday 2 March 2015

रक्षक

आखिर क्यों हम खुद को खुश नही रख सकते खुद के बारे में क्यों नही सोच सकते इसमें गलत क्या है ?
खुद की केयर करना खुद से प्यार करना स्वार्थी होना क्यों समझा जाता है ?जबकि ये सारी दुनिया अपने बनाये नोर्म्स पर ही हम सबको ज़ज करती या फिट मानती है तो क्या ये स्वार्थ नहीं है ?पता नहीं
मैं ने देखा है की जो व्यक्ति सही होता है, सच्चा होता है अक्सर वही बेचारा दुनियादरी की चक्की में पिस्ता है और दुखी रहता है , वही दूसरी तरफ जो व्यक्ति लगातार ज्यात्तिया  करता है , अपने ही बनाये नियम दुसरों पर थोपता है पुरे परिवार, समाज पर ,उसे ही पूजा जाता  है , साथ ही ऐसा व्यक्ति अपने निजिजीवन में सफल होता है वहीं दूसरी तरफ सही व्यक्ति दुनिया के बनाये मोर्चो पर असफल होता रहता है. ऐसे व्यक्ति अक्सर फ्रस्टेशन का शिकार हो जाता है
ऐसे फ्रेशटेड व्यक्ति अपना फ्रस्टेशन अपने बच्चो व् पत्नी या अपने अजीजों पर निकालते है या फिर एक अजीबो गरीब ,सकुचित, नकारात्मक सोच को अपना लेते है की यही हमारी व् हमारे बच्चो की किस्मत है. हमको व् हमारे बच्चो को हमेशा ही समझोता करना ही पड़ेगा, समाज की दया पर निर्भर रहना ही पड़ेगा, हम कुछ भी नहीं कर सकते और न ही कर पायेगे
ज्यादातर केसों में तो ऐसा होता है की व्यक्ति खुद ही अपने बच्चोंको आगे बढ़ने नही देता है, उनको भी उसी तरह डीमोटीवेट करते है जैसा की society  ने उनके साथ किया था. ऐसे व्यक्ति घर में ही नही बाहर भी अपने बच्चो की कमिया गिनाते रहते है, संक्षेप में कहे तो अपनी किस्मत अपने बच्चो पर थोप देते है. वहि सब करते या दोहराते है जो कभी खुद उनके साथ हुआ था ऐसे व्यक्ति अपने बच्चो को बचाने की कोशिश नही करते है बल्कि उन्हें नकारात्मकता के कुएं में धकेल देते है और ऐसा करने में उनकी कोई बुरी मंशा नहीं होती है बल्कि वो ऐसा इसलिए करते है क्योंकि वो अपने बच्चें को दुनिया की बुराईयों से बचाना चाहते है आपको थोड़ा कन्फ्युजन को रहा है न कि मै क्या कहना चाहती हूँ एक उदाहरण देकर समझाती हूँ मेरी एक चाचीजी है जो कि अक्सर अपनी लड़की पर बिना बात के गुस्सा करती रहती है अपशब्द भी कहती है जबकि लडकी पुरे घर का काम करती है पढाई में, व्यवहार में अच्छी है एक दिन चाची कुछ ज्यादा ही भड़की थी तब मैं ने उस लडकी का पक्ष लेकर चाची को रोका और कहा की जब ये गलती करे तो जरुर इसे डाटे पर कम से कम अपशब्द तो न कहे तब मेरी चाचीजी का कहना था की “ऐसा व्यवहार अपनी लडकी के साथ इसलिए करती हूँ की अपशब्द सुनने की इसे आदत पड़ जाये ताकि कल को जब ये अपनी ससुराल जाये और वहा उसके साथ बुरा व्यवहार हो तो उसे बुरा न लगे, और कोई तकलीफ न हो  ” अब बताइए की किसी के भविष्य का फैसला क्या इस तरह किया जा सकता है बुरे भविष्य की कल्पना करके वर्तमान को बुरा बनाना कहाँ की समझदारी है. बुरा व्यवाहर हमेशा बुरा ही लगता है. अपशब्द हमेशा ही तकलीफ देते है इनकी कभी भी आदत नहीं लग सकती बल्कि इस तरह से बच्चे या तो डरपोक,बद्तमीज,अव्वल दर्जे के स्वार्थी,मक्कार,झूटे, दुसरो से जलने वाले, दुसरो को तकलीफ देने वाले बनेगे जैसी तकलीफ में वो खुद होगे और दुसरो की खुशियां छीन कर अपने भाग्य में सजाने की कोशिश करते है. ऐसे बच्चे मनोविकार के शिकार हो जाते है तो क्या इस तरह ये बच्चे अंधे कुए में नही धकेले जा रहे है ऐसे बच्चे अपने माता पिता के प्रति भी बुरा व्यवहार भविष्य में कर सकते है या इनमे सेल्फ-हेट की प्रॉब्लम होती है वो खुद को चोट ओर तकलीफ देने लगते है खुद से घृणा करना बहुत ही भयानक िस्थती है
खुद से प्यार करना ,अच्छा व्यवहार करना गलत नही है क्योकि जब तक आप खुद को अपने असली स्वरूप में नही स्विकारगे ,इज्जत नही करगे तो ये दुनिया भी आप की इज्जत नही करेगी गलत व्यवहार को स्विकार करना ही सबसे बड़ी गलती है किसी के सम्मान के लिए अपने आत्मसम्मान को दाँव पर लगाना समझदारी नही है अपने अधिकारों की, सम्मान की रक्षा आपको स्वयं करनी पड़ेगी तो अपने रक्षक स्वयं बने और अपने उज्ज्वल भविष्य की रक्षा करे l 
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